धनासरी महला ३ ॥
काचा धनु संचहि मूरख गावार ॥ मनमुख भूले अंध गावार ॥ बिखिआ कै धनि सदा दुखु होइ ॥ ना साथि जाइ न परापति होइ ॥१॥ साचा धनु गुरमती पाए ॥ काचा धनु फुनि आवै जाए ॥ रहाउ ॥ मनमुखि भूले सभि मरहि गवार ॥ भवजलि डूबे न उरवारि न पारि ॥ सतिगुरु भेटे पूरै भागि ॥ साचि रते अहिनिसि बैरागि ॥२॥ चहु जुग महि अम्रितु साची बाणी ॥ पूरै भागि हरि नामि समाणी ॥ सिध साधिक तरसहि सभि लोइ ॥ पूरै भागि परापति होइ ॥३॥ सभु किछु साचा साचा है सोइ ॥ ऊतम ब्रहमु पछाणै कोइ ॥ सचु साचा सचु आपि द्रिड़ाए ॥ नानक आपे वेखै आपे सचि लाए ॥४॥७॥ {पन्ना 665}
अर्थ: जो मनुष्य गुरू की मति पर चलते हैं, वे सदा कायम रहने वाले हरी-नाम-धन को हासिल कर लेते हैं। (पर दुनिया वाला) नाशवंत धन कभी मनुष्य को मिल जाता है कभी हाथ से निकल जाता है। रहाउ।
हे भाई! मूर्ख अंजान लोग (सिर्फ दुनियावी) नाशवंत धन (ही) जोड़ते हैं। अपने मन के पीछे चलने वाले, माया के मोह में अंधे हुए मनुष्य गलत रास्ते पर पड़े रहते हैं। हे भाई! माया के धन से सदा दुख (ही) मिलता है। ये धन ना ही मनुष्य के साथ जाता है और ना ही (इसे इकट्ठा कर-करके) संतोष ही मिलता है।1।
हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य (माया के मोह के कारण) गलत राह पड़ कर आत्मिक मौत सहेड़ लेते हैं, संसार समुंद्र में डूब जाते हैं, ना इस पार रहते हैं, ना उस पार (ना ये माया आखिर तक साथ निभाती है, ना नाम-धन जोड़ा होता है)। जिन मनुष्यों को पूरी किस्मत से गुरू मिल जाता है वह दिन रात (हर वक्त) सदा-स्थिर हरी-नाम में मगन रहते हैं (नाम की बरकति से माया की ओर से) उपरामता में टिके रहते हैं।2।
हे भाई! सदा-स्थिर प्रभू की सिफत सालाह वाली गुरबाणी सदा ही आत्मिक जीवन देने वाला नाम-जल (बाँटती है), पूरी किस्मत से (मनुष्य इस बाणी की बरकति से) परमात्मा के नाम में लीन हो जाता है। हे भाई! करामाती योगी और साधना करने वाले योगी सारे ही जगत में (इस बाणी की खातिर) तरले लेते हैं, पर पूरी किस्मत से मिलती है।3।
हे भाई! जो कोई विरला मनुष्य पवित्र-स्वरूप परमात्मा के साथ सांझ डालता है उसे हरेक चीज़ सदा-स्थिर प्रभू का रूप दिखाई देती है, उसे हर जगह वह सदा-स्थिर प्रभू ही बसता दिखता है। हे नानक! सदा-स्थिर रहने वाला परमात्मा अपना सदा-स्थिर नाम खुद ही (मनुष्य के दिल में) पक्का करता है। वह खुद ही (सबकी) संभाल करता है, और खुद ही (जीवों को) अपने सदा स्थिर नाम में जोड़ता है।4।7।