धनासरी महला ५ ॥
जिस का तनु मनु धनु सभु तिस का सोई सुघड़ु सुजानी ॥ तिन ही सुणिआ दुखु सुखु मेरा तउ बिधि नीकी खटानी ॥१॥ जीअ की एकै ही पहि मानी ॥ अवरि जतन करि रहे बहुतेरे तिन तिलु नही कीमति जानी ॥ रहाउ ॥ अम्रित नामु निरमोलकु हीरा गुरि दीनो मंतानी ॥ डिगै न डोलै द्रिड़ु करि रहिओ पूरन होइ त्रिपतानी ॥२॥ ओइ जु बीच हम तुम कछु होते तिन की बात बिलानी ॥ अलंकार मिलि थैली होई है ता ते कनिक वखानी ॥३॥ प्रगटिओ जोति सहज सुख सोभा बाजे अनहत बानी ॥ कहु नानक निहचल घरु बाधिओ गुरि कीओ बंधानी ॥४॥५॥ {पन्ना 671}
अर्थ: हे भाई! जिंद की (अरदास) एक परमात्मा के पास ही मानी जाती है। (परमात्मा के आसरे के बिना लोग) और ज्यादा यत्न करके थक जाते हैं, उन प्रयत्नों का मूल्य एक तिल जितना भी नहीं समझा जाता। रहाउ।
हे भाई! जिस प्रभू का दिया हुआ ये शरीर और मन है, ये सारा धन-पदार्थ भी उसी का दिया हुआ है, वही सुचॅजा है और समझदार है। हम जीवों का दुख-सुख (सदा) उस परमात्मा ने ही सुना है, (जब वह हमारी प्रार्थना आरजू सुनता है) तब (हमारी) हालत अच्छी बन जाती है।1।
हे भाई! परमात्मा का नाम आत्मिक जीवन देने वाला है, नाम एक ऐसा हीरा है जो किसी मूल्य से नहीं मिल सकता। गुरू ने ये नाम-मंत्र (जिसय मनुष्य को) दे दिया, वह मनुष्य (विकारों में) गिरता नहीं, डोलता नहीं, वह मनुष्य पक्के इरादे वाला बन जाता है, वह मुक्मल तौर पर (माया की ओर से) संतुष्ट रहता है।2।
(हे भाई! जिस मनुष्य को गुरू की तरफ से नाम-हीरा मिल जाता है, उसके अंदर से) उस मेर-तेर वाले सारे भेदभाव वाली बात खत्म हो जाती है जो जगत में बड़े प्रबल हैं। (उस मनुष्य को हर तरफ से परमात्मा ही ऐसा दिखता है, जैसे) अनेकों गहने मिल के (गलाए जाने पर) रैणी बन जाते हैं, और उस ढेली के रूप में भी वह सोना ही कहलाते हैं।3।
(हे भाई! जिस मनुष्य के अंदर गुरू की कृपा से) परमात्मा की ज्योति का प्रकाश हो जाता है, उसके अंदर आत्मिक अडोलता के आनंद पैदा हो जाते हैं, उसको हर जगह शोभा मिलती है, उसके हृदय में सिफत सालाह की बाणी के (मानो) एक-रस बाजे बजते रहते हैं। हे नानक! कह– गुरू ने जिस मनुष्य के वास्ते ये प्रबंध कर दिया, वह मनुष्य सदा के लिए प्रभू-चरनों में ठिकाना प्राप्त कर लेता है।4।5।