सोरठि महला ५ ॥
आगै सुखु मेरे मीता ॥ पाछे आनदु प्रभि कीता ॥ परमेसुरि बणत बणाई ॥ फिरि डोलत कतहू नाही ॥१॥ साचे साहिब सिउ मनु मानिआ ॥ हरि सरब निरंतरि जानिआ ॥१॥ रहाउ ॥ सभ जीअ तेरे दइआला ॥ अपने भगत करहि प्रतिपाला ॥ अचरजु तेरी वडिआई ॥ नित नानक नामु धिआई ॥२॥२३॥८७॥ {पन्ना 630}
अर्थ: हे भाई! जिस मनुष्य का मन सदा कायम रहने वाले मालिक (के नाम) से पतीज जाता है, वह मनुष्य उस मालिक प्रभू को सब में एक-रस बसता पहचान लेता है।1। रहाउ।
हे मेरे मित्र! जिस मनुष्य के आगे आने वाले जीवन में प्रभू ने सुख बना दिया, जिसके बीत चुके जीवन में भी प्रभू ने आनंद बनाए रखा, जिस मनुष्य के लिए परमेश्वर ने ऐसी योजना बना रखी, वह मनुष्य (लोक-परलोक में) कहीं भी डोलता नहीं।1।
हे दया के घर प्रभू! सारे जीव तेरे पैदा किए हुए हैं, तू अपने भक्तों की रखवाली स्वयं ही करता है। हे प्रभू! तू आश्चर्य स्वरूप है। तेरी बख्शिश भी हैरान कर देने वाली है। हे नानक! (कह– जिस मनुष्य पर प्रभू बख्शिश करता है, वह) सदा उसका नाम सिमरता रहता है।2।23।87।