Amrit Vele Ka Hukamnama (HINDI) Gurdwara Sri Guru Singh Sabha C Block Hari Nagar – 9-1-25

सूही महला ४ ॥
जिन कै अंतरि वसिआ मेरा हरि हरि तिन के सभि रोग गवाए ॥ ते मुकत भए जिन हरि नामु धिआइआ तिन पवितु परम पदु पाए ॥१॥ मेरे राम हरि जन आरोग भए ॥ गुर बचनी जिना जपिआ मेरा हरि हरि तिन के हउमै रोग गए ॥१॥ रहाउ ॥ ब्रहमा बिसनु महादेउ त्रै गुण रोगी विचि हउमै कार कमाई ॥ जिनि कीए तिसहि न चेतहि बपुड़े हरि गुरमुखि सोझी पाई ॥२॥ हउमै रोगि सभु जगतु बिआपिआ तिन कउ जनम मरण दुखु भारी ॥ गुर परसादी को विरला छूटै तिसु जन कउ हउ बलिहारी ॥३॥ जिनि सिसटि साजी सोई हरि जाणै ता का रूपु अपारो ॥ नानक आपे वेखि हरि बिगसै गुरमुखि ब्रहम बीचारो ॥४॥३॥१४॥ {पन्ना 735}

अर्थ: हे भाई! मेरे राम के, मेरे हरी के, दास (अहंकार आदि से) नरोए हो गए हैं। जिन मनुष्यों ने गुरू के वचनों पर चल के मेरे हरी प्रभू का नाम जपा उनके अहंकार (आदि) रोग दूर हो गए।1। रहाउ।

हे भाई! जिन मनुष्यों के हृदय में मेरा हरी-प्रभू आ बसता है, उनके वह हरी सारे रोग दूर कर देता है। हे भाई! जिन मनुष्यों ने परमात्मा का नाम सिमरा, वह (अहंकार आदि जैसे रोगों से) स्वतंत्र हो गए, उन्होंने सबसे ऊँचा आत्मिक पवित्र दर्जा हासिल कर लिया।1।

(हे भाई! पुराणों की बताई साखियों के अनुसार) माया के तीन गुणों के प्रभाव के कारण (बड़े देवते) ब्रहमा, विष्णु, शिव (भी) रोगी ही रहे, (क्योंकि उन्होंने भी) अहंकार में ही कर्म किए। जिस परमात्मा ने उनको पैदा किया था, उसे उन बेचारों ने याद नहीं किया। हे भाई! परमात्मा की सूझ (तो) गुरू की शरण पड़ने से ही मिल सकती है।2।

हे भाई! सारा जगत अहंकार के रोग में फसा रहता है (और, अहंकार में फसे हुए) उन मनुष्यों को जन्म-मरण के चक्कर का बहुत सारा दुख लगा रहता है। कोई विरला मनुष्य गुरू की कृपा से (इस अहंम् रोग से) खलासी पाता है। मैं (ऐसे) उस मनुष्य के सदके जाता हूँ।3।

हे भाई! जिस परमात्मा ने ये सारी सृष्टि पैदा की है, वह खुद ही (इसके रोग को) जानता है (और, दूर करता है)। उस परमात्मा का स्वरूप किसी भी हदबंदी से परे है। हे नानक! वह परमात्मा खुद ही (अपनी रची सृष्टि को) देख के खुश होता है। गुरू की शरण पड़ कर ही परमात्मा के गुणों की समझ आती है।4।3।14।

About the Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like these