सूही महला ५ ॥
करम धरम पाखंड जो दीसहि तिन जमु जागाती लूटै ॥ निरबाण कीरतनु गावहु करते का निमख सिमरत जितु छूटै ॥१॥ संतहु सागरु पारि उतरीऐ ॥ जे को बचनु कमावै संतन का सो गुर परसादी तरीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ कोटि तीरथ मजन इसनाना इसु कलि महि मैलु भरीजै ॥ साधसंगि जो हरि गुण गावै सो निरमलु करि लीजै ॥२॥ बेद कतेब सिम्रिति सभि सासत इन्ह पड़िआ मुकति न होई ॥ एकु अखरु जो गुरमुखि जापै तिस की निरमल सोई ॥३॥ खत्री ब्राहमण सूद वैस उपदेसु चहु वरना कउ साझा ॥ गुरमुखि नामु जपै उधरै सो कलि महि घटि घटि नानक माझा ॥४॥३॥५०॥ {पन्ना 747}
अर्थ: हे संत जनों! (सिफत सालाह की बरकति से) संसार-समुंद्र से पार लांघा जा सकता है। अगर कोई मनुष्य संत जनों के उपदेश को (जीवन में) कमा ले, वह मनुष्य गुरू की कृपा से पार लांघ जाता है।1। रहाउ।
हे भाई! (तीर्थ-स्नान आदि निहित) धार्मिक काम दिखावे के काम हैं, ये काम जितने भी लोग करते हुए दिखाई देते हैं, उन्हें मसूलिया जम लूट लेता है। (इस वास्ते) वासना-रहित हो के करतार की सिफत सालाह किया करो, क्योंकि इसकी बरकति से छिन भर भी नाम सिमरने मात्र से मनुष्य विकारों से खलासी पा लेता है।1।
हे भाई! करोड़ों तीर्थ-स्नान (करते हुए भी) जगत में (विकारों की) मैल लिबड़ जाती है। पर जो मनुष्य गुरू की संगति में (टिक के) परमात्मा की सिफत सालाह के गीत गाता रहता है, वह पवित्र जीवन वाला बन जाता है।2।
हे भाई! वेद-पुराण-स्मृतियाँ आदि ये सारे (हिन्दू धर्म पुस्तकें) (कुरान-अंजील आदि) ये सारे (पश्चिमी धर्म की पुस्तकें) आदि को सिर्फ पढ़ने मात्र से विकारों से निजात नहीं मिलती। पर जो मनुष्य गुरू की शरण पड़ कर अबिनाशी प्रभू का नाम जपता है, उसकी (लोक-परलोक में) पवित्र शोभा बन जाती है।3।
हे भाई! (परमात्मा का नाम सिमरने का) उपदेश खत्री-ब्राहमण-वैश-शूद्र चारों वर्णों के लोगों के वास्ते एक जैसा ही है। (किसी भी वर्ण का हो) जो मनुष्य गुरू के बताए हुए रास्ते पर चल के प्रभू का नाम जपता है वह जगत में विकारों से बच निकलता है। हे नानक! उस मनुष्य को परमात्मा हरेक शरीर में बसा हुआ दिखाई देता है।4।3।50।