Amrit Vele Ka Hukamnama (HINDI) Gurdwara Sri Guru Singh Sabha C Block Hari Nagar – 21-12-24

सलोकु मः ३ ॥
ब्रहमु बिंदै तिस दा ब्रहमतु रहै एक सबदि लिव लाइ ॥ नव निधी अठारह सिधी पिछै लगीआ फिरहि जो हरि हिरदै सदा वसाइ ॥ बिनु सतिगुर नाउ न पाईऐ बुझहु करि वीचारु ॥ नानक पूरै भागि सतिगुरु मिलै सुखु पाए जुग चारि ॥१॥ मः ३ ॥ किआ गभरू किआ बिरधि है मनमुख त्रिसना भुख न जाइ ॥ गुरमुखि सबदे रतिआ सीतलु होए आपु गवाइ ॥ अंदरु त्रिपति संतोखिआ फिरि भुख न लगै आइ ॥ नानक जि गुरमुखि करहि सो परवाणु है जो नामि रहे लिव लाइ ॥२॥ पउड़ी ॥ हउ बलिहारी तिंन कंउ जो गुरमुखि सिखा ॥ जो हरि नामु धिआइदे तिन दरसनु पिखा ॥ सुणि कीरतनु हरि गुण रवा हरि जसु मनि लिखा ॥ हरि नामु सलाही रंग सिउ सभि किलविख क्रिखा ॥ धनु धंनु सुहावा सो सरीरु थानु है जिथै मेरा गुरु धरे विखा ॥१९॥ {पन्ना 650}

अर्थ: जो मनुष्य केवल गुरू शबद में बिरती जोड़ के ब्रहम को पहचाने, उसका ब्राहमणपन बरकरार रहता है; जो मनुष्य हरी को दिल में बसाए, नौ-निधियां और अठारह सिद्धियां उसके पीछे लगी फिरती हैं।

विचार के समझो, सतिगुरू के बिना नाम नहीं मिलता, हे नानक! पूरे भाग्यों से जिसको सतिगुरू मिले वह चारों युगों में (अर्थात, हमेशा) सुख पाता है।1।

जवान हो या वृद्ध- मनमुख की तृष्णा भूख दूर नहीं होती, सतिगुरू के सनमुख हुए मनुष्य शबद में रंगे होने के कारण और अहंकार गवा के अंदर से संतोषी होते हैं।

(उनका) हृदय तृप्ति के कारण संतोषी होता है, और फिर (उनको माया की) भूख नहीं लगती। हे नानक! गुरमुख मनुष्य जो कुछ करते हैं, वह कबूल होता है, क्योंकि वह नाम में बिरती जोड़े रखते हैं।2।

जो सिख सतिगुरू के सन्मुख हैं, मैं उनसे सदके हूँ। जो हरी-नाम सिमरते हैं (जी चाहता है) मैं उनके दर्शन करूँ, (उनसे) कीर्तन सुन के हरी के गुण गाऊँ और हरी-यश मन में उकर लूँ, प्रेम से हरी नाम की सिफत करूँ और (अपने) सारे पाप काट दूँ। वह शरीर-स्थल धन्य है, सुंदर है जहाँ प्यारा सतिगुरू पैर रखता है (भाव, आ के बसता है)।19।

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