Amrit Vele Ka Hukamnama (HINDI) Gurdwara Sri Guru Singh Sabha C Block Hari Nagar – 16-12-24

पहिल पुरीए पुंडरक वना ॥ ता चे हंसा सगले जनां ॥ क्रिस्ना ते जानऊ हरि हरि नाचंती नाचना ॥१॥ पहिल पुरसाबिरा ॥ अथोन पुरसादमरा ॥ असगा अस उसगा ॥ हरि का बागरा नाचै पिंधी महि सागरा ॥१॥ रहाउ ॥ नाचंती गोपी जंना ॥ नईआ ते बैरे कंना ॥ तरकु न चा ॥ भ्रमीआ चा ॥ केसवा बचउनी अईए मईए एक आन जीउ ॥२॥ पिंधी उभकले संसारा ॥ भ्रमि भ्रमि आए तुम चे दुआरा ॥ तू कुनु रे ॥ मै जी ॥ नामा ॥ हो जी ॥ आला ते निवारणा जम कारणा ॥३॥४॥ {पन्ना 693}

नोट: शब्द ‘आला’ का अर्थ कई सज्जन ‘आया’ करते हैं। इस शब्द ‘आला’ को वे धातु ‘आ’ का ‘भूतकाल’ मानते हैं। मराठी बोली में किसी धातु से ‘भूतकाल’ बनाने के लिए पिछेत्तर ‘ला’ का प्रयोग किया जाता है। पर धातु ‘आ’ से मराठी में ‘आला’ भूतकाल नहीं बनता। ‘आ’ और ‘ला’ के बीच ‘इ’ भी प्रयोग में लाई जाती है। ‘आ’ का भूतकाल बनेगा ‘आइला’; जैसे;

“गरुड़ चढ़े गोबिंदु आइला” (नामदेव जी)

शब्द ‘ते’ के लिए वे सज्जन ‘और’ अर्थ करते हैं। ये भी गलत है। ‘ते’ के अर्थ हैं ‘से’। ‘अते’ (और) के लिए पुरानी पंजाबी में शब्द ‘तै’ है।3।

अर्थ: पहले पुरुष (अकाल पुरख) प्रगट हुआ (“आपीनै् आपु साजिओ, आपीनै रचिओ नाउ”)। फिर अकाल-पुरख से माया (बनी) (“दुयी कुदरति साजीअै”)। इस माया का और उस अकाल-पुरख का (मेल हुआ) (“करि आसणु डिठो चाउ”)। (इस तरह ये संसार) परमात्मा का एक सुंदर सा बाग़ (बन गया है, जो) ऐसे नाच रहा है जैसे (कूएं की) टिंडों में पानी नाचता है (भाव, संसार के जीव माया में मोहित हो के दौड़-भाग कर रहे हैं, माया के हाथों में नाच रहे हैं)।1। रहाउ।

पहले पहल (जो जगत बना वह, मानो) कमल फूलों का खेत है, सारे जीव-जंतु उस (कमल के फूलों के खेत) के हंस हैं। परमात्मा की ये रचना नाच कर रही है। ये प्रभू की माया (की प्रेरणा) से समझो।1।

सि्त्रयां-मर्द सब नाच रहे हैं, (पर इन सबमें) परमात्मा के बिना और कोई नहीं है। (हे भाई! इस में) शक ना कर, (इस संबंध में) भ्रम दूर कर दे। हरेक स्त्री-मर्द में परमात्मा के बचन ही एक-रस हो रहे हैं (भाव, हरेक जीव में परमात्मा खुद ही बोल रहा है)।2।

(हे भाई! जीव-) टिंडें (जैसे रहट के डिब्बे पानी में डुबकियां लेते हैं) संसार-समुंद्र में डुबकियां ले रही हैं। हे प्रभू! भटक-भटक के मैं तेरे दर पर आ गिरा हूँ। हे (प्रभू) जी! (अगर तू मुझसे पूछे) तू कौन है? (तो) हे जी! मैं नामा हूँ। मुझे जगत के जंजाल से, जो कि जमों (के डरों) का कारण है, बचा ले।3।4।

शबद का भाव: माया का प्रभाव और इसका इलाज।

ये सारी मायावी रचना प्रभू से ही उत्पन्न हुई है, प्रभू सब में व्यापक है। पर जीव प्रभू को बिसार के माया के हाथ में नाच रहे हैं। प्रभू की शरण पड़ कर ही इससे बचा जा सकता है।

About the Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like these