सोरठि महला ५ ॥
प्रभ की सरणि सगल भै लाथे दुख बिनसे सुखु पाइआ ॥ दइआलु होआ पारब्रहमु सुआमी पूरा सतिगुरु धिआइआ ॥१॥ प्रभ जीउ तू मेरो साहिबु दाता ॥ करि किरपा प्रभ दीन दइआला गुण गावउ रंगि राता ॥ रहाउ ॥ सतिगुरि नामु निधानु द्रिड़ाइआ चिंता सगल बिनासी ॥ करि किरपा अपुनो करि लीना मनि वसिआ अबिनासी ॥२॥ ता कउ बिघनु न कोऊ लागै जो सतिगुरि अपुनै राखे ॥ चरन कमल बसे रिद अंतरि अम्रित हरि रसु चाखे ॥३॥ करि सेवा सेवक प्रभ अपुने जिनि मन की इछ पुजाई ॥ नानक दास ता कै बलिहारै जिनि पूरन पैज रखाई ॥४॥१४॥२५॥ {पन्ना 615-616}
अर्थ: हे प्रभू जी! तू मेरा मालिक है, तू मुझे सारी दातें देने वाला है। हे दीनों पर दया करने वाले प्रभू! (मेरे पर) मेहर कर, मैं तेरे प्रेम-रंग में रंग के तेरे गुण गाता रहूँ। रहाउ।
हे भाई! जो मनुष्य पूरे गुरू का ध्यान धरता है, उस पर मालिक परमात्मा दयावान होता है (और, वह मनुष्य परमात्मा की शरण पड़ता है) परमात्मा की शरण पड़ने से उसके सारे डर उतर जाते हैं, सारे दुख दूर हो जाते हैं, वह (सदा) आत्मिक आनंद लेता है।1।
हे भाई! जिस मनुष्य के हृदय में गुरू ने सारे सुखों का खजाना प्रभू-नाम पक्का कर दिया, उसकी सारी चिंताएं दूर हो गई। परमात्मा मेहर करके उसको अपना बना लेता है, उसके मन में नाश-रहित परमात्मा आ बसता है।2।
हे भाई! अपने गुरू ने जिस मनुष्य की रक्षा की उसको (आत्मिक जीवन के रास्ते में) कोई रुकावट नहीं आती। परमात्मा के कमल-फूल जैसे कोमल चरण उसके हृदय में आ बसते हैं, वह मनुष्य आत्मिक जीवन देने वाला हरी-नाम-रस सदा चखता है।3।
हे भाई! जिस परमात्मा ने (हर वक्त) तेरे मन की (हरेक) कामना पूरी की है, सेवक की तरह उसकी सेवा-भक्ति करता रह। हे दास नानक! (कह–) मैं उस प्रभू से सदके जाता हूँ, जिसने (विघनों से मुकाबले पर हर समय) पूरी तौर पर इज्जत बचा के रखी है।4।14।25।