धनासरी महला ५ घरु १२ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बंदना हरि बंदना गुण गावहु गोपाल राइ ॥ रहाउ ॥ वडै भागि भेटे गुरदेवा ॥ कोटि पराध मिटे हरि सेवा ॥१॥ चरन कमल जा का मनु रापै ॥ सोग अगनि तिसु जन न बिआपै ॥२॥ सागरु तरिआ साधू संगे ॥ निरभउ नामु जपहु हरि रंगे ॥३॥ पर धन दोख किछु पाप न फेड़े ॥ जम जंदारु न आवै नेड़े ॥४॥ त्रिसना अगनि प्रभि आपि बुझाई ॥ नानक उधरे प्रभ सरणाई ॥५॥१॥५५॥ {पन्ना 683-684}
अर्थ: हे भाई! परमात्मा को हमेशा नमस्कार किया करो, प्रभू पातशाह के गुण गाते रहो। रहाउ।
हे भाई! जिस मनुष्य को खुश-किस्मती से गुरू मिल जाता है, (गुरू के द्वारा) परमात्मा की सेवा-भक्ति करने से उसके करोड़ों पाप मिट जाते हैं।1।
हे भाई! जिस मनुष्य का मन परमात्मा के सोहणें चरणों (के प्रेम-रंग में) रंगा जाता है, उस मनुष्य पर चिंता की आग जोर नहीं डाल सकती।2।
हे भाई! प्रेम सं निर्भय प्रभू का नाम जपा करो। गुरू की संगति में (नाम जपने की बरकति से) संसार-समुंद्र से पार लांघ जाते हैं।3।
हे भाई! (सिमरन के सदका) पराए धन (आदि) के कोई ऐब आदि दुष्कर्म नहीं होते, भयानक यम भी नजदीक नहीं फटकता (मौत का डर नहीं व्याप्ता, आत्मिक मौत नजदीक नहीं आती)।4।
हे भाई! (जो मनुष्य प्रभू के गुण गाते हैं) उनकी तृष्णा की आग प्रभू ने खुद बुझा दी है। हे नानक! प्रभू की शरण पड़ कर (अनेकों जीव तृष्णा की आग में से) बच निकलते हैं।5।1।55।