सलोक ॥
बसंति स्वरग लोकह जितते प्रिथवी नव खंडणह ॥ बिसरंत हरि गोपालह नानक ते प्राणी उदिआन भरमणह ॥१॥ कउतक कोड तमासिआ चिति न आवसु नाउ ॥ नानक कोड़ी नरक बराबरे उजड़ु सोई थाउ ॥२॥ पउड़ी ॥ महा भइआन उदिआन नगर करि मानिआ ॥ झूठ समग्री पेखि सचु करि जानिआ ॥ काम क्रोधि अहंकारि फिरहि देवानिआ ॥ सिरि लगा जम डंडु ता पछुतानिआ ॥ बिनु पूरे गुरदेव फिरै सैतानिआ ॥९॥ {पन्ना 707}
अर्थ: अगर स्वर्ग जैसे देश में बसते हों, अगर सारी धरती को जीत लें, पर, हे नानक! अगर जगत के रखवाले प्रभू को बिसार दे, तो वे मनुष्य (मानो) जंगल में भटक रहे हैं।1।
जगत के करोड़ों चोज-तमाशों के कारण अगर प्रभू का नाम चिक्त में (याद) ना रहे, तो हे नानक! वह जगह तो उजाड़ ही समझो, वह जगह भयानक नर्क के बराबर है।2।
बड़े डरावने जंगल को जीवों ने शहर समझ लिया है, इन नाशवान पदार्थों को देख के सदा टिके रहने वाले समझ लिया है। (इस वास्ते इनकी खातिर) काम में क्रोध में अहंकार में पागल हुए फिरते हैं, जब मौत का डण्डा सिर पे आ बजता है, तब पछताते हैं। (हे भाई! मनुष्य) पूरे गुरू की शरण के बिना शैतान के समान फिरता है।9।