सूही महला ५ ॥
हरि चरण कमल की टेक सतिगुरि दिती तुसि कै बलि राम जीउ ॥ हरि अम्रिति भरे भंडार सभु किछु है घरि तिस कै बलि राम जीउ ॥ बाबुलु मेरा वड समरथा करण कारण प्रभु हारा ॥ जिसु सिमरत दुखु कोई न लागै भउजलु पारि उतारा ॥ आदि जुगादि भगतन का राखा उसतति करि करि जीवा ॥ नानक नामु महा रसु मीठा अनदिनु मनि तनि पीवा ॥१॥ {पन्ना 778}
अर्थ: हे भाई! मैं सुंदर प्रभू से सदके जाता हूँ (उसकी मेहर से) गुरू ने मेहरवान हो के मुझे उसके सुंदर चरणों का आसरा दिया है। मैं उस प्रभू से कुर्बान हूँ, उसके घर में हरेक पदार्थ मौजूद है, आत्मिक जीवन देने वाले नाम-जल से (उसके घर में) खजाने भरे पड़े हैं।
हे भाई! मेरा प्रभू-पति बड़ी ताकतों का मालिक है, वह प्रभू हरेक सबब बना सकने वाला है। (वह ऐसा है) जिसका नाम सिमरने से कोई दुख छू नहीं सकता, (उसका नाम) संसार-समुंद्र से पार लंघा देता है।
हे भाई! जगत के आरम्भ से ही (वह प्रभू अपने) भक्तों का रखवाला (चला आ रहा) है। उसकी सिफत सालाह कर कर के मैं आत्मिक जीवन हसिल कर रहा हूँ। हे नानक! (कह– हे भाई! उसका) नाम मीठा है, (सब रसों से) बड़ा रस है मैं तो हर वक्त (वह नाम-रस अपने) मन के द्वारा ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा पीता रहता हूँ।1।