बैराड़ी महला ४ ॥
हरि जनु राम नाम गुन गावै ॥ जे कोई निंद करे हरि जन की अपुना गुनु न गवावै ॥१॥ रहाउ ॥ जो किछु करे सु आपे सुआमी हरि आपे कार कमावै ॥ हरि आपे ही मति देवै सुआमी हरि आपे बोलि बुलावै ॥१॥ हरि आपे पंच ततु बिसथारा विचि धातू पंच आपि पावै ॥ जन नानक सतिगुरु मेले आपे हरि आपे झगरु चुकावै ॥२॥३॥ {पन्ना 719}
अर्थ: हे भाई! परमात्मा का भक्त सदा परमात्मा के गुण गाता रहता है। अगर कोई मनुष्य उस भगत की निंदा (भी) करता है तो वह भगत अपना स्वभाव नहीं त्यागता।1। रहाउ।
हे भाई! (भक्त अपनी निंदा सुन के भी अपना स्वभाव नहीं त्यागता, क्योंकि वह जानता है कि) जो कुछ कर रहा है मालिक-प्रभू खुद ही (जीवों में बैठ के) कर रहा है, वह खुद ही हरेक कार कर रहा है। मालिक-प्रभू खुद ही (हरेक जीव को) मति देता है, खुद ही (हरेक में बैठा) बोल रहा है, खुद ही (हरेक जीव को) बोलने की प्रेरणा कर रहा है।1।
हे भाई! (भक्त जानता है कि) परमात्मा ने खुद ही (अपने आप से) पाँच तत्वों का जगत पसारा पसारा हुआ है, खुद ही इन तत्वों में पाँचों विषौ भरे हुए हैं। हे नानक! (कह– हे भाई!) परमात्मा आप ही अपने सेवक को मिलाता है, और, आप ही (उसके अंदर से हरेक किस्म की) खींचतान खत्म करता है।2।3।