धनासरी महला ४ ॥
हम अंधुले अंध बिखै बिखु राते किउ चालह गुर चाली ॥ सतगुरु दइआ करे सुखदाता हम लावै आपन पाली ॥१॥ गुरसिख मीत चलहु गुर चाली ॥ जो गुरु कहै सोई भल मानहु हरि हरि कथा निराली ॥१॥ रहाउ ॥ हरि के संत सुणहु जन भाई गुरु सेविहु बेगि बेगाली ॥ सतगुरु सेवि खरचु हरि बाधहु मत जाणहु आजु कि काल्ही ॥२॥ हरि के संत जपहु हरि जपणा हरि संतु चलै हरि नाली ॥ जिन हरि जपिआ से हरि होए हरि मिलिआ केल केलाली ॥३॥ हरि हरि जपनु जपि लोच लुोचानी हरि किरपा करि बनवाली ॥ जन नानक संगति साध हरि मेलहु हम साध जना पग राली ॥४॥४॥ {पन्ना 667}
अर्थ: हे गुरसिख मित्रो! गुरू के बताए हुए राह पर चलो। (गुरू कहता है कि परमात्मा की सिफत सालाह किया केरो, ये) जो कुछ गुरू कहता है, इसको (अपने लिए) भला समझो, (क्योंकि) प्रभू की सिफत सालाह अनोखी (तब्दीली जीवन में पैदा कर देती है)।1। रहाउ।
हे भाई! हम जीव माया के मोह में बहुत अँधे हो के मायावी पदार्थों के जहर में मगन रहते हैं। हम कैसे गुरू के बताए हुए राह पर चल सकते हैं? सुखों को देने वाला गुरू (खुद ही) मेहर करे, और हमें अपने साथ लगा ले।1।
हे हरी के संत जनो! हे भाईयो! सुनो, जल्दी ही गुरू की शरण पड़ जाओ। गुरू की शरण पड़ कर (जीवन यात्रा के लिए) परमात्मा के नाम की खर्ची (पल्ले) बाँधो। कहीं ये ना समझ लेना कि आज (ये काम कर लेंगे) सवेरे (ये काम कर लेंगे। टाल-मटोल नहीं करना)।2।
हे हरी के संत जनो! परमात्मा के नाम का जाप किया करो। (इस जाप की बरकति से) हरी का संत हरी की रजा में चलने लग जाता है। हे भाई! जो मनुष्य परमात्मा का नाम जपते हैं, वे परमात्मा का रूप हो जाते हैं। रंग-तमाशे करने वाला तमाशेबाज (चोजी) प्रभू उन्हें मिल जाता है।3।
हे दास नानक! (कह–) हे बनवारी प्रभू! मुझे तेरा नाम जपने की चाहत लगी हुई है। मेहर कर, मुझे साध-संगति में मिलाए रख, मुझे तेरे संत-जनों की धूड़ मिली रहे।4।4।