Amrit Vele Ka Hukamnama (HINDI) Gurdwara Sri Guru Singh Sabha C Block Hari Nagar – 13-10-24

सलोकु मः ३ ॥
बिनु सतिगुर सेवे जगतु मुआ बिरथा जनमु गवाइ ॥ दूजै भाइ अति दुखु लगा मरि जमै आवै जाइ ॥ विसटा अंदरि वासु है फिरि फिरि जूनी पाइ ॥ नानक बिनु नावै जमु मारसी अंति गइआ पछुताइ ॥१॥ मः ३ ॥ इसु जग महि पुरखु एकु है होर सगली नारि सबाई ॥ सभि घट भोगवै अलिपतु रहै अलखु न लखणा जाई ॥ पूरै गुरि वेखालिआ सबदे सोझी पाई ॥ पुरखै सेवहि से पुरख होवहि जिनी हउमै सबदि जलाई ॥ तिस का सरीकु को नही ना को कंटकु वैराई ॥ निहचल राजु है सदा तिसु केरा ना आवै ना जाई ॥ अनदिनु सेवकु सेवा करे हरि सचे के गुण गाई ॥ नानकु वेखि विगसिआ हरि सचे की वडिआई ॥२॥ पउड़ी ॥ जिन कै हरि नामु वसिआ सद हिरदै हरि नामो तिन कंउ रखणहारा ॥ हरि नामु पिता हरि नामो माता हरि नामु सखाई मित्रु हमारा ॥हरि नावै नालि गला हरि नावै नालि मसलति हरि नामु हमारी करदा नित सारा ॥ हरि नामु हमारी संगति अति पिआरी हरि नामु कुलु हरि नामु परवारा ॥ जन नानक कंउ हरि नामु हरि गुरि दीआ हरि हलति पलति सदा करे निसतारा ॥१५॥ {पन्ना 591} {पन्ना 592}

अर्थ: सतिगुरू के बताए राह पर चले बिना मानस जनम व्यर्थ गवा के संसार मुर्दे के समान है; माया के प्यार में बहुत कलेश बना हुआ है और (इसमें ही) मरता है फिर पैदा होता है, आता है फिर जाता है; (जब तक जीता है, इसका विकारों के) गंद में वास रहता है, (मर के) पलट-पलट के जूनियों में पड़ता है; हे नानक! आखिरी समय पछताता हुआ जाता है (क्योंकि उस वक्त याद आता है) कि नाम के बिना जम सजा देगा।1।

इस संसार में पति एक परमात्मा ही है, और सारी सृष्टि (उसकी) सि्त्रयां हैं; परमात्मा पति सारे घटों को भोगता है (भाव, सारे शरीरों में व्यापक है) और निर्लिप भी है, इस अलख प्रभू की समझ नहीं पड़ती।

(जिस मनुष्य को) पूरे सतिगुरू ने (उस अलख प्रभू के) दर्शन करवा दिए, उसको सतिगुरू के शबद द्वारा समझ पड़ गई; जिन मनुष्यों ने शबद के माध्यम से अहंकार दूर किया है, जो प्रभू पुरुख को जपते हैं, वे भी उस पुरुष का रूप हो जाते हैं।

उस अलख हरी का कोई शरीक नहीं, ना ही कोई दुखी करने वाला (काँटा) उस का वैरी है; उसका राज सदा अटल है, ना वह पैदा होता है ना मरता है।

(सच्चा) सेवक उस सच्चे हरी की सिफत सालाह करके हर वक्त उसका सिमरन करता है; नानक (भी उस) सच्चे की महिमा देख के प्रसन्न हो रहा है।2।

जिन मनुष्यों के दिल में सदैव हरी नाम बसता है, उन्हें रखने वाला हरी का नाम ही होता है। (उन्हें विश्वास हो जाता है कि) हरी का नाम ही हमारा माता-पिता है और नाम ही हमारा सखा और मित्र है।

हरी के नाम से ही हमारी बातें, और नाम से ही सलाह हैं; नाम ही सदा हमारी सार लेता है; हरी का नाम ही हमारी प्यारी संगति है, और नाम ही हमारा कुल व परिवार है।

दास नानक को भी गुरू ने (उस) हरी का नाम दिया है जो इस लोक में और परलोक में पार उतारा करता है।15।

 

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